हे ईश्वर, मुझे अपनी शांति का माध्यम बनाओ, ताकि,
जहाँ घ्रिडा हैं वह मैं प्रेम लाऊँ,
जहाँ आघात हैं वहां मैं छमा लाऊँ,
जहाँ द्वेष हैं वहां मैं एकात्मा लाऊँ ,
जहाँ त्रुटी हैं, वहां मैं सत्य लाऊँ,
जहाँ संदेह हैं वहां मैं विश्वास जगाऊँ,
जहाँ निराशा हैं वहां मैं आस जगाऊँ,
जहाँ अँधेरा हैं, वहां मैं उजियारा करूं,
जहाँ उदासी हैं वहां मैं प्रसन्नता लाऊँ,
मुझमे वो हिम्मत दो की मैं दिलासा पाने की अपेक्षा, उसे दुसरो को दे पाऊँ,
दुसरे मुझे समझ पाए इसकी अपेक्षा मैं उन्हें समझ पाऊँ,
प्रेम पाने की अपेक्षा उसे दूसरो को दे पाऊँ,
क्यूंकि स्वयं को भुला कर ही यह आभास होता है की,
छमादान करके ही स्वयं छमा प्राप्त करते हैं,
मृत्युप्रप्ती के पश्चात ही शाश्वत जीवन प्राप्त होता है I
जहाँ घ्रिडा हैं वह मैं प्रेम लाऊँ,
जहाँ आघात हैं वहां मैं छमा लाऊँ,
जहाँ द्वेष हैं वहां मैं एकात्मा लाऊँ ,
जहाँ त्रुटी हैं, वहां मैं सत्य लाऊँ,
जहाँ संदेह हैं वहां मैं विश्वास जगाऊँ,
जहाँ निराशा हैं वहां मैं आस जगाऊँ,
जहाँ अँधेरा हैं, वहां मैं उजियारा करूं,
जहाँ उदासी हैं वहां मैं प्रसन्नता लाऊँ,
मुझमे वो हिम्मत दो की मैं दिलासा पाने की अपेक्षा, उसे दुसरो को दे पाऊँ,
दुसरे मुझे समझ पाए इसकी अपेक्षा मैं उन्हें समझ पाऊँ,
प्रेम पाने की अपेक्षा उसे दूसरो को दे पाऊँ,
क्यूंकि स्वयं को भुला कर ही यह आभास होता है की,
छमादान करके ही स्वयं छमा प्राप्त करते हैं,
मृत्युप्रप्ती के पश्चात ही शाश्वत जीवन प्राप्त होता है I
3 comments:
Blogging is the new poetry. I find it wonderful and amazing in many ways.
Hey keep posting such good and meaningful articles.
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